ਕਬ੍ਯੋ ਬਾਚ ਬੇਨਤੀ ॥
ਚੌਪਈ ॥
ਹਮਰੀ ਕਰੋ ਹਾਥ ਦੈ ਰਛਾ ॥
ਪੂਰਨ ਹੋਇ ਚਿਤ ਕੀ ਇਛਾ ॥
ਤਵ ਚਰਨਨ ਮਨ ਰਹੈ ਹਮਾਰਾ ॥
ਅਪਨਾ ਜਾਨ ਕਰੋ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰਾ ॥੩੭੭॥
ਹਮਰੇ ਦੁਸਟ ਸਭੈ ਤੁਮ ਘਾਵਹੁ ॥
ਆਪੁ ਹਾਥ ਦੈ ਮੋਹਿ ਬਚਾਵਹੁ ॥
ਸੁਖੀ ਬਸੈ ਮੋਰੋ ਪਰਿਵਾਰਾ ॥
ਸੇਵਕ ਸਿਖ੍ਯ ਸਭੈ ਕਰਤਾਰਾ ॥੩੭੮॥
ਮੋ ਰਛਾ ਨਿਜੁ ਕਰ ਦੈ ਕਰਿਯੈ ॥
ਸਭ ਬੈਰਿਨ ਕੌ ਆਜ ਸੰਘਰਿਯੈ ॥
ਪੂਰਨ ਹੋਇ ਹਮਾਰੀ ਆਸਾ ॥
ਤੋਰਿ ਭਜਨ ਕੀ ਰਹੈ ਪਿਯਾਸਾ ॥੩੭੯॥
ਤੁਮਹਿ ਛਾਡਿ ਕੋਈ ਅਵਰ ਨ ਧ੍ਯਾਊ ॥
ਜੋ ਬਰ ਚਾਹੌ ਸੁ ਤੁਮ ਤੇ ਪਾਊ ॥
ਸੇਵਕ ਸਿਖ੍ਯ ਹਮਾਰੇ ਤਾਰਿਯਹਿ ॥
ਚੁਨ ਚੁਨ ਸਤ੍ਰੁ ਹਮਾਰੇ ਮਾਰਿਯਹਿ ॥੩੮੦॥
ਆਪੁ ਹਾਥ ਦੈ ਮੁਝੈ ਉਬਰਿਯੈ ॥
ਮਰਨ ਕਾਲ ਕਾ ਤ੍ਰਾਸ ਨਿਵਰਿਯੈ ॥
ਹੂਜੋ ਸਦਾ ਹਮਾਰੇ ਪਛਾ ॥
ਸ੍ਰੀ ਅਸਿਧੁਜ ਜੂ ਕਰਿਯਹੁ ਰਛਾ ॥੩੮੧॥
ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਮੁਹਿ ਰਾਖਨਹਾਰੇ ॥
ਸਾਹਿਬ ਸੰਤ ਸਹਾਇ ਪਿਯਾਰੇ ॥
ਦੀਨਬੰਧੁ ਦੁਸਟਨ ਕੇ ਹੰਤਾ ॥
ਤੁਮ ਹੋ ਪੁਰੀ ਚਤੁਰਦਸ ਕੰਤਾ ॥੩੮੨॥
ਕਾਲ ਪਾਇ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਪੁ ਧਰਾ ॥
ਕਾਲ ਪਾਇ ਸਿਵ ਜੂ ਅਵਤਰਾ ॥
ਕਾਲ ਪਾਇ ਕਰਿ ਬਿਸਨ ਪ੍ਰਕਾਸਾ ॥
ਸਕਲ ਕਾਲ ਕਾ ਕੀਯਾ ਤਮਾਸਾ ॥੩੮੩॥
ਜਵਨ ਕਾਲ ਜੋਗੀ ਸਿਵ ਕੀਯੋ ॥
ਬੇਦ ਰਾਜ ਬ੍ਰਹਮਾ ਜੂ ਥੀਯੋ ॥
ਜਵਨ ਕਾਲ ਸਭ ਲੋਕ ਸਵਾਰਾ ॥
ਨਮਸਕਾਰ ਹੈ ਤਾਹਿ ਹਮਾਰਾ ॥੩੮੪॥
ਜਵਨ ਕਾਲ ਸਭ ਜਗਤ ਬਨਾਯੋ ॥
ਦੇਵ ਦੈਤ ਜਛਨ ਉਪਜਾਯੋ ॥
ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਏਕੈ ਅਵਤਾਰਾ ॥
ਸੋਈ ਗੁਰੂ ਸਮਝਿਯਹੁ ਹਮਾਰਾ ॥੩੮੫॥
ਨਮਸਕਾਰ ਤਿਸ ਹੀ ਕੋ ਹਮਾਰੀ ॥
ਸਕਲ ਪ੍ਰਜਾ ਜਿਨ ਆਪ ਸਵਾਰੀ ॥
ਸਿਵਕਨ ਕੋ ਸਿਵਗੁਨ ਸੁਖ ਦੀਯੋ ॥
ਸਤ੍ਰੁਨ ਕੋ ਪਲ ਮੋ ਬਧ ਕੀਯੋ ॥੩੮੬॥
ਘਟ ਘਟ ਕੇ ਅੰਤਰ ਕੀ ਜਾਨਤ ॥
ਭਲੇ ਬੁਰੇ ਕੀ ਪੀਰ ਪਛਾਨਤ ॥
ਚੀਟੀ ਤੇ ਕੁੰਚਰ ਅਸਥੂਲਾ ॥
ਸਭ ਪਰ ਕ੍ਰਿਪਾ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਕਰਿ ਫੂਲਾ ॥੩੮੭॥
ਸੰਤਨ ਦੁਖ ਪਾਏ ਤੇ ਦੁਖੀ ॥
ਸੁਖ ਪਾਏ ਸਾਧਨ ਕੇ ਸੁਖੀ ॥
ਏਕ ਏਕ ਕੀ ਪੀਰ ਪਛਾਨੈ ॥
ਘਟ ਘਟ ਕੇ ਪਟ ਪਟ ਕੀ ਜਾਨੈ ॥੩੮੮॥
ਜਬ ਉਦਕਰਖ ਕਰਾ ਕਰਤਾਰਾ ॥
ਪ੍ਰਜਾ ਧਰਤ ਤਬ ਦੇਹ ਅਪਾਰਾ ॥
ਜਬ ਆਕਰਖ ਕਰਤ ਹੋ ਕਬਹੂੰ ॥
ਤੁਮ ਮੈ ਮਿਲਤ ਦੇਹ ਧਰ ਸਭਹੂੰ ॥੩੮੯॥
ਜੇਤੇ ਬਦਨ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਭ ਧਾਰੈ ॥
ਆਪੁ ਆਪੁਨੀ ਬੂਝਿ ਉਚਾਰੈ ॥
ਤੁਮ ਸਭ ਹੀ ਤੇ ਰਹਤ ਨਿਰਾਲਮ ॥
ਜਾਨਤ ਬੇਦ ਭੇਦ ਅਰੁ ਆਲਮ ॥੩੯੦॥
ਨਿਰੰਕਾਰ ਨ੍ਰਿਬਿਕਾਰ ਨ੍ਰਿਲੰਭ ॥
ਆਦਿ ਅਨੀਲ ਅਨਾਦਿ ਅਸੰਭ ॥
ਤਾ ਕਾ ਮੂੜ ਉਚਾਰਤ ਭੇਦਾ ॥
ਜਾ ਕੋ ਭੇਵ ਨ ਪਾਵਤ ਬੇਦਾ ॥੩੯੧॥
ਤਾ ਕੌ ਕਰਿ ਪਾਹਨ ਅਨੁਮਾਨਤ ॥
ਮਹਾ ਮੂੜ ਕਛੁ ਭੇਦ ਨ ਜਾਨਤ ॥
ਮਹਾਦੇਵ ਕੌ ਕਹਤ ਸਦਾ ਸਿਵ ॥
ਨਿਰੰਕਾਰ ਕਾ ਚੀਨਤ ਨਹਿ ਭਿਵ ॥੩੯੨॥
ਆਪੁ ਆਪੁਨੀ ਬੁਧਿ ਹੈ ਜੇਤੀ ॥
ਬਰਨਤ ਭਿੰਨ ਭਿੰਨ ਤੁਹਿ ਤੇਤੀ ॥
ਤੁਮਰਾ ਲਖਾ ਨ ਜਾਇ ਪਸਾਰਾ ॥
ਕਿਹ ਬਿਧਿ ਸਜਾ ਪ੍ਰਥਮ ਸੰਸਾਰਾ ॥੩੯੩॥
ਏਕੈ ਰੂਪ ਅਨੂਪ ਸਰੂਪਾ ॥
ਰੰਕ ਭਯੋ ਰਾਵ ਕਹੀ ਭੂਪਾ ॥
ਅੰਡਜ ਜੇਰਜ ਸੇਤਜ ਕੀਨੀ ॥
ਉਤਭੁਜ ਖਾਨਿ ਬਹੁਰਿ ਰਚਿ ਦੀਨੀ ॥੩੯੪॥
ਕਹੂੰ ਫੂਲਿ ਰਾਜਾ ਹ੍ਵੈ ਬੈਠਾ ॥
ਕਹੂੰ ਸਿਮਟਿ ਭਯੋ ਸੰਕਰ ਇਕੈਠਾ ॥
ਸਗਰੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਦਿਖਾਇ ਅਚੰਭਵ ॥
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਸਰੂਪ ਸੁਯੰਭਵ ॥੩੯੫॥
ਅਬ ਰਛਾ ਮੇਰੀ ਤੁਮ ਕਰੋ ॥
ਸਿਖ੍ਯ ਉਬਾਰਿ ਅਸਿਖ੍ਯ ਸੰਘਰੋ ॥
ਦੁਸਟ ਜਿਤੇ ਉਠਵਤ ਉਤਪਾਤਾ ॥
ਸਕਲ ਮਲੇਛ ਕਰੋ ਰਣ ਘਾਤਾ ॥੩੯੬॥
ਜੇ ਅਸਿਧੁਜ ਤਵ ਸਰਨੀ ਪਰੇ ॥
ਤਿਨ ਕੇ ਦੁਸਟ ਦੁਖਿਤ ਹ੍ਵੈ ਮਰੇ ॥
ਪੁਰਖ ਜਵਨ ਪਗੁ ਪਰੇ ਤਿਹਾਰੇ ॥
ਤਿਨ ਕੇ ਤੁਮ ਸੰਕਟ ਸਭ ਟਾਰੇ ॥੩੯੭॥
ਜੋ ਕਲਿ ਕੌ ਇਕ ਬਾਰ ਧਿਐਹੈ ॥
ਤਾ ਕੇ ਕਾਲ ਨਿਕਟਿ ਨਹਿ ਐਹੈ ॥
ਰਛਾ ਹੋਇ ਤਾਹਿ ਸਭ ਕਾਲਾ ॥
ਦੁਸਟ ਅਰਿਸਟ ਟਰੈਂ ਤਤਕਾਲਾ ॥੩੯੮॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਤਨ ਜਾਹਿ ਨਿਹਰਿਹੋ ॥
ਤਾ ਕੇ ਤਾਪ ਤਨਕ ਮਹਿ ਹਰਿਹੋ ॥
ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਘਰ ਮੋ ਸਭ ਹੋਈ ॥
ਦੁਸਟ ਛਾਹ ਛ੍ਵੈ ਸਕੈ ਨ ਕੋਈ ॥੩੯੯॥
ਏਕ ਬਾਰ ਜਿਨ ਤੁਮੈ ਸੰਭਾਰਾ ॥
ਕਾਲ ਫਾਸ ਤੇ ਤਾਹਿ ਉਬਾਰਾ ॥
ਜਿਨ ਨਰ ਨਾਮ ਤਿਹਾਰੋ ਕਹਾ ॥
ਦਾਰਿਦ ਦੁਸਟ ਦੋਖ ਤੇ ਰਹਾ ॥੪੦੦॥
ਖੜਗਕੇਤੁ ਮੈ ਸਰਨਿ ਤਿਹਾਰੀ ॥
ਆਪੁ ਹਾਥ ਦੈ ਲੇਹੁ ਉਬਾਰੀ ॥
ਸਰਬ ਠੌਰ ਮੋ ਹੋਹੁ ਸਹਾਈ ॥
ਦੁਸਟ ਦੋਖ ਤੇ ਲੇਹੁ ਬਚਾਈ ॥੪੦੧॥
ੴ स्री वाहगुरू जी की फतह ॥
पातिसाही १० ॥
कबियो बाच बेनती ॥
चौपई ॥
हमरी करो हाथ दै रछा ॥
पूरन होइ चि्त की इछा ॥
तव चरनन मन रहै हमारा ॥
अपना जान करो प्रतिपारा ॥१॥
हमरे दुशट सभै तुम घावहु ॥
आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥
सुखी बसै मोरो परिवारा ॥
सेवक सि्खय सभै करतारा ॥२॥
मो रछा निजु कर दै करियै ॥
सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥
पूरन होइ हमारी आसा ॥
तोरि भजन की रहै पियासा ॥३॥
तुमहि छाडि कोई अवर न धयाऊं ॥
जो बर चहों सु तुमते पाऊं ॥
सेवक सि्खय हमारे तारियहि ॥
चुन चुन श्त्रु हमारे मारियहि ॥४॥
आपु हाथ दै मुझै उबरियै ॥
मरन काल का त्रास निवरियै ॥
हूजो सदा हमारे प्छा ॥
स्री असिधुज जू करियहु ्रछा ॥५॥
राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥
साहिब संत सहाइ पियारे ॥
दीनबंधु दुशटन के हंता ॥
तुमहो पुरी चतुरदस कंता ॥६॥
काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥
काल पाइ शिवजू अवतरा ॥
काल पाइ करि बिशन प्रकाशा ॥
सकल काल का कीया तमाशा ॥७॥
जवन काल जोगी शिव कीयो ॥
बेद राज ब्रहमा जू थीयो ॥
जवन काल सभ लोक सवारा ॥
नमशकार है ताहि हमारा ॥८॥
जवन काल सभ जगत बनायो ॥
देव दैत ज्छन उपजायो ॥
आदि अंति एकै अवतारा ॥
सोई गुरू समझियहु हमारा ॥९॥
नमशकार तिस ही को हमारी ॥
सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥
सिवकन को सवगुन सुख दीयो ॥
श्त्रुन को पल मो बध कीयो ॥१०॥
घट घट के अंतर की जानत ॥
भले बुरे की पीर पछानत ॥
चीटी ते कुंचर असथूला ॥
सभ पर क्रिपा द्रिशटि करि फूला ॥११॥
संतन दुख पाए ते दुखी ॥
सुख पाए साधन के सुखी ॥
एक एक की पीर पछानै ॥
घट घट के पट पट की जानै ॥१२॥
जब उदकरख करा करतारा ॥
प्रजा धरत तब देह अपारा ॥
जब आकरख करत हो कबहूं ॥
तुम मै मिलत देह धर सभहूं ॥१३॥
जेते बदन स्रिशटि सभ धारै ॥
आपु आपुनी बूझि उचारै ॥
तुम सभ ही ते रहत निरालम ॥
जानत बेद भेद अरु आलम ॥१४॥
निरंकार न्रिबिकार न्रिल्मभ ॥
आदि अनील अनादि अस्मभ ॥
ताका मूड़्ह उचारत भेदा ॥
जाको भेव न पावत बेदा ॥१५॥
ताकौ करि पाहन अनुमानत ॥
महां मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥
महांदेव कौ कहत सदा शिव ॥
निरंकार का चीनत नहि भिव ॥१६॥
आपु आपुनी बुधि है जेती ॥
बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥
तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥
किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥१७॥
एकै रूप अनूप सरूपा ॥
रंक भयो राव कहीं भूपा ॥
अंडज जेरज सेतज कीनी ॥
उतभुज खानि बहुरि रचि दीनी ॥१८॥
कहूं फूलि राजा ह्वै बैठा ॥
कहूं सिमटि भयो शंकर इकैठा ॥
सगरी स्रिशटि दिखाइ अच्मभव ॥
आदि जुगादि सरूप सुय्मभव ॥१९॥
अब ्रछा मेरी तुम करो ॥
सि्खय उबारि असि्खय स्घरो ॥
दुशट जिते उठवत उतपाता ॥
सकल मलेछ करो रण घाता ॥२०॥
जे असिधुज तव शरनी परे ॥
तिन के दुशट दुखित ह्वै मरे ॥
पुरख जवन पगु परे तिहारे ॥
तिन के तुम संकट सभ टारे ॥२१॥
जो कलि कौ इक बार धिऐहै ॥
ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥
्रछा होइ ताहि सभ काला ॥
दुशट अरिशट टरे ततकाला ॥२२॥
क्रिपा द्रिशाटि तन जाहि निहरिहो ॥
ताके ताप तनक महि हरिहो ॥
रि्धि सि्धि घर मों सभ होई ॥
दुशट छाह छ्वै सकै न कोई ॥२३॥
एक बार जिन तुमैं स्मभारा ॥
काल फास ते ताहि उबारा ॥
जिन नर नाम तिहारो कहा ॥
दारिद दुशट दोख ते रहा ॥२४॥
खड़ग केत मैं शरनि तिहारी ॥
आप हाथ दै लेहु उबारी ॥
सरब ठौर मो होहु सहाई ॥
दुशट दोख ते लेहु बचाई ॥२५॥
Patshai Dasvi
Kabio Vach Bainti
Chaupai
hamri kro hath dai rchcha.
pooran hoeh chit ki eichcha.
tav charnan mun rehai hmara.
apna jan kro pritipara. (1)
hamrai dust sabhai tum ghao
aapu hath dai moeh bachavo;
sukhi basaimoro privara
saivak sikh sbhai kartara. (2)
mo rchcha nij kr dai kriye.
sabh bairn ko aij sunghriye.
pooran hoeh hmari aasa.
tor bhjan ki rehai piaasa. (3)
tumeh chadi koei avr na dhiyaoun
jo bar chon so tum tai paoon.
saivk sikh hmarai tariaeh
chuni chuni strhmarai mariaeh. (4)
aap hath dai mujhai obriyai
mrn kal ka tras nivriaye.
hoojo sda hamaraipchcha
sri asidhuj joo kriyo rchcha. (5)
rakh laiho mohe rakhan harai
sahib sant shaeh piyarai
deen bundhu dustan kai hunta
tum ho puri chtur dus kunta. (6)
kal paeh brhma bup dhra.
kal paeh siv joo avtra.
kal paeh kr bisnu prkasa
skl kal ka kia tmasa. (7)
jvan kal jogi siv kio
baid raj brahma joo thio
jvn kal sabh lok svara
nmskar hai taeh hmara. (8)
jvn kal sabh jagat bnaio
dev daint jchchan oopjaio
adi aunti aikai avtara
soei guru smjhiayho hmara (9)
nmskar tis hi ko hamari
skal prja jin aap svari
sivkn ko siv gun sukh dio
sttrun ko pul mo bdh kio. (10)
ghat ghat kai antar ki jant
bhlai burai ki pir pachant
chiti tai kunchrasthoola
sabh par kirpa diristi kar phoola. (11)
suntun dukh paai tai dukhi
sukh paai sadhun kai sukhi
aik aik ki pir pchanain
ghat ghat kai put put ki janai. (12)
jub oodkrkh kra kartara
prja dhrt tab dai apara
jub aakrkh kart ho kabhoon
tum mai milat dai dhr sbhhoon (13)
jaitai bdan sirsti sbh dharai
aap aapni boojh oocharai
tum sabh hi tai reht niralm
jant baid bhaid ar aalm (14)
nirankar niribkar nirlunbh
adi anil anadi asunbh
ta ka moorh oocharut bhaida
ja ko bhaiv na pavat baida. (15)
ta ko kar pahn anumant
maha moorh kcho bhaid na jant
mahadaiv ko keht sda siv
nirankar ka chint neh bhiv. (16)
aap aapni budhi hai jaiti
barnt bhinun bhinun tuhe taiti
tumra lkha na jaeh psara
keh bidhi sja prthm sunsara. (17)
aikai roop anoop sroopa
runk bhyo rav kehi bhoopa
andj jairj saitj kini
ootbhuj khani bhor rchi deeni (18)
kahoon phool raja hvai baitha
kahoon simit bhio sunkr aikaitha
sgri sirsti dikhaeh achunbhv
adi jugadi sroop suyunbhv. (19)
ab rchcha mairi tum kro
sikh oobari asikh soghro
dust jitai oothvat ootpata
skal mlaich kro run ghata. (20)
jai asidhuj tav sarni parai
tin kai dusht dukhit hvai mrai
purkh jvan pug parai tiharai
tin kai tum sunkt sabh tarai. (21)
jo kal ko eik bar dhiaai hai
ta kai kal nikti neh aai hai
rchcha hoeh taeh sabh kala
dust arist train tatkala. (22)
kirpa diristi tun jaeh nihriho
ta kai tap tnak mo herho.
ridhdhi sidhdhi ghar mo sabh hoei
dust chah chvai skai na koei. (23)
aik bar jin tumai sunbhara
kal phas tai taeh oobara
jin nar nam tiharo kaha
darid dust dokh tai raha. (24)
kharag kait mai sarni tehari
aap hath dai laio oobari
sarb thor mo hohu sahaei
dust dokh tai laiho bchaei. (25)
Kripaa kari ham par jagmaataa||
Granth karaa pooran subh raataa||
Kilbikh sakal deh ko hartaa||
Dusht dokhiyan ko chhai kartaa ||26||
Sri asidhuj jab bhae dayaalaa||
Pooran karaa granth tatkaalaa||
Man baanchhat phal paavai soee||
Dookh na tisai biaapat koee||27||
Arhil
Sunai gung jo yaahe su rasnaa paavaee||
Sunai moorh chit laae chaturtaa aavaee||
Dookh dard bhau nikath na tin nar ke rahai||
Ho jo yaaki ek baar chaupai ko kahai||28||
Chaoupai
Sanbhat satrah sahas bhanijai||
Aradh sahas phun teen kahijai||
Bhaadrav sudi ashtami ravi vaaraa||
Teer satuddrav granth sudhaaraa||29||
Swaiyaa
Paahe gahe jab te tumre tab te kou aankh tare nahi aanyo||
Raam Raheem Puraan Kuraan aneyk kahai mat eyk na maanyo||
Sinmrit Shaastra Bed sabhai bahu bhed kahai ham ek naa jaanyo||
Sri asipaan kripaa tumri kar mai na kahyo sabh tohe bakhaanyo||863||
Dohraa
Sagal duaar kau chhaad kai gahyo tuhaaro duaar||
Bahe gahe ki laaj as Gobind daas tuhaar||864||